Betul News: बैतूल के दुल्हारा गांव में तवा नदी के किनारे भारी मात्रा में ‘ब्लैक गोल्ड’ यानी कोयला पाया जाता है। वर्षों से कोयला माफिया यहां प्रशासन की नाक के नीचे बिना अनुमति के बड़े पैमाने पर कोयला निकाल रहा है। इस गांव की अर्थव्यवस्था काफी हद तक इस अवैध कोयला खनन पर निर्भर है। यहां कोयला जमीन के सतह के ठीक नीचे पाया जाता है, जिसे निकालने के लिए गांव वाले कोयला माफियाओं के लिए काम करते हैं।
सुरंग और कुंओं से होता है कोयला खनन
दुल्हारा गांव में ग्रामीण सुरंग बनाकर कोयला खदान तैयार करते हैं। कई बार वे कुएं जैसे गड्ढे भी खोदते हैं। इन खदानों के मुंह को इस तरह छिपाया जाता है कि वे दूर से दिखाई न दें। खदान के मुंह से कोयला मिलने तक खुदाई की जाती है। यहां 50 से 100 फीट लंबी सुरंगें बनाई जाती हैं, जिनमें मजदूर अंदर जाकर कोयला निकालते हैं। कुछ स्थानों पर बहुत पुराने और खतरनाक कुएं दिखाई देते हैं। अब तक हजारों टन कोयला इन अवैध खदानों से निकाला जा चुका है।
प्रशासन की कोशिशें और माफियाओं की चालाकी
जिले के प्रशासन ने इन खदानों को कई बार बंद करने की कोशिश की, लेकिन कोयला माफिया हर बार नई चाल चलते हुए फिर से इन खदानों को खोल देते हैं। यह कोयला बैतूल के पड़ोसी जिलों और इंदौर, भोपाल, महाराष्ट्र जैसे बड़े शहरों में ऊंचे दामों पर बेचा जाता है।
खनिज विभाग की कार्रवाई और चुनौतियां
अब जिला कलेक्टर के निर्देश पर खनिज विभाग ने इन खदानों को बंद करने की मुहिम फिर शुरू कर दी है। जेसीबी की मदद से खदानों के मुंह और कुएं बंद किए जा रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या ये कदम पर्याप्त होंगे? क्योंकि इस क्षेत्र का इतिहास बताता है कि माफिया प्रशासन द्वारा बंद की गई खदानों से ज्यादा नई खदानें खोल लेते हैं।