हमारे भारत में एलोपैथिक इलाज के साथ-साथ आयुर्वेदिक इलाज भी कारीगर माना जाता है. हमारे यहां आयुर्वेद का बहुत बड़ा महत्त्व है. और आयुर्वेद की शुरुवात ही जड़ी-बूटियों और पेड़ पौधो से हुई है. बहुत से पुस्तकों और ग्रंथो में पेड़-पौधो के महत्त्व का वर्णन है. आपके लिए आज हम ऐसे ही पौधो के बारे में जानकारी बताने जा रहे है. इस पौधे में एंटीऑक्सिडेंट, विरोधी भड़काऊ और जीवाणुरोधी गुण पाए जाते है जो की श्वसन संबंधी समस्याओं, पाचन समस्याओं और त्वचा की स्थिति सहित विभिन्न बीमारियों के इलाज में कारीगर है. इसका नाम है ‘बहेडा’ और वैज्ञानिक नाम टर्मिनेलिया बेलिरिका है.
बहेड़ा का विस्तार
भारत, नेपाल, श्रीलंका और दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र ने पाए जाने वाले बहेड़ा के पेड़ लगभग 30 मीटर ऊंचाई के होते है. और इसमें फल देरी से आते है. बहेड़ा के पौधो का विस्तार बीज, कटिंग या एयर लेयरिंग विधि से किया जा सकता है. देर से वसंत या गर्मियों की शुरुआत में इनकी रोपाई की जाती है. बहेड़ा के पेड़ो को नियमित रूप से पानी देना चाहिए और विशेष रूप से शुष्क मौसम के दौरान ध्यान रखना चाइये।
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बहेड़ा की खेती
अच्छी जल निकासी वाली उपजाऊ मिट्टी बहेड़ा के उत्पादन के लिए बेहतर मानी जाती है. अगर आप बहेड़ा की खेती कर बिक्री करना चाहते है,तो इससे आप तगड़ा मुनाफा लामा सकते है,क्युकी दवाइयां बनाने के लिए बहेड़ा की खासी डिमांड होती है. जिससे आप इसे फ़ायदेमंद खेती का व्यापार बना सकते है.
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