जातिवाद की तरफ बढ़ती दिख रही मध्यप्रदेश की राजनीती में सबसे अहम भूमिका ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग की है वो इसीलिए क्योकि OBC को लेकर देश की सियासत में बीजेपी और कांग्रेस के बीच मची होड़ के रंग मध्य प्रदेश की राजनीति में भी दिखने लगे हैं। ये होड़ इसलिए और मची हुई है क्योकि प्रदेश के 70 से अधिक विधानसभा क्षेत्रों में ओबीसी मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। कांग्रेस ने 17 नवंबर को होने वाले चुनाव के लिए 42 प्रतिशत ओबीसी उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, गैर-आरक्षित 148 सीटों में से पार्टी ने 80 सीटों पर ऊंची जातियों, राजपूतों और ब्राह्मणों को टिकट दिया है।
दो टिकट मुसलमानों को भी दिए गए
जबकि दो टिकट मुसलमानों को भी दिए गए हैं वहीं बीजेपी ने 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की तुलना में ओबीसी को 4% अधिक टिकट देकर ज्यादा हिमायती होने का दावा किया है। पिछले चुनावों के परिणामों पर गौर करें तो जहां ओबीसी वर्ग 50 फीसदी से अधिक आबादी के कारण एकतरफा निर्णायक भूमिका में रहे इसी दरमियान 2018 के चुनाव में ओबीसी का सर्वाधिक रुझान कांग्रेस की ओर था। यही कारण है कि 40 फीसदी से अधिक ओबीसी आबादी वाली 72 सीटों में से कांग्रेस ने 43 जीत ली थीं और बीजेपी के खाते में सिर्फ 25 सीटें आई।
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बागी निर्दलीयों और एक-एक बीएसपी और सपा ने जीती थी
जबकि 2 कांग्रेस के बागी निर्दलीयों और एक-एक बीएसपी और सपा ने जीती थी। प्रदेश की आधी आवादी को साधने के लिए दोनों पार्टियां ने कई दावे किये है। कांग्रेस नेतृत्व ने मध्य प्रदेश में पार्टी के सत्ता में आने पर जाति जनगणना का वादा किया है वहीँ बीजेपी दावा कर रही है की पार्टी ने राज्य में तीन ओबीसी सीएम बनाए। साथ ही मंत्रिमंडल में सबसे ज्यादा ओबीसी मंत्री बनाए गए। दोनों पार्टियों में यह बताने की होड़ मची है कि वे ही ओबीसी हितैषी हैं, बरहाल देखना तो ये होगा की 40 फीसदी से अधिक ओबीसी समुदाय का चुनावी ऊंट किस करवट बैठता है?