
देश में सभी तरह के जानवरों के कुल मांस उत्पादन लगभग एक करोड़ टन है। इसमें बकरे के मांस की हिस्सेदारी लगभग 15 प्रतिशत है। घरेलू बाजार में मांस की बिक्री के तरीके के हिसाब से यह आंकड़ा और भी बड़ा हो सकता है। केंद्रीय पशुपालन मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक मांस उत्पादन में भारत का आठवां स्थान है। पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा के दौरान बकरे बड़ी संख्या में बिकती हैं।
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बकरी पालन हमेशा से मांस के लिए किया जाता रहा है। आज भी बाजार में बकरी के दूध से ज्यादा बकरे के मांस का कारोबार है। संगठन के अभाव में दूध का कारोबार आगे नहीं बढ़ पा रहा है। यही वजह है कि जरूरत पड़ने पर बकरी का दूध 300 से 400 रुपये लीटर तक बिक जाता है। जबकि बकरी बकरे से जल्दी मुनाफा देने लगती है। बकरी बच्चा पैदा करने के बाद दूध देना शुरू कर देती है। वहीं बकरा छह महीने का होने पर ही मुनाफा देना शुरू करता है। मांस की वजह से साल के 12 महीने बकरे की डिमांड रहती है।
बकरीद की वजह से साल के सिर्फ एक महीने में इतनी बकरे बिक जाती हैं कि पशुपालक पूरे साल की अर्थव्यवस्था सुधार लेते हैं। अब देश के साथ-साथ विदेशों से भी बकरे के मांस की डिमांड है। मांस में केमिकल की समस्या को दूर करने के लिए सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च ऑन गोट (CIRG), मथुरा लगातार काम कर रहा है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि आज के बाजार को देखते हुए मांस के कारोबार में मंदी आने की संभावना लगभग न के बराबर है।
इन बकरे को मांस के लिए पालें, जल्दी मिलेगा मुनाफा
बकरी विशेषज्ञों के मुताबिक आपको अपने इलाके में उपलब्ध बकरियों और भेड़ों की नस्ल ही पालनी चाहिए। क्योंकि वह नस्ल अच्छी तरह से बढ़ेगी। लेकिन जिन बकरियों की नस्लों को खासतौर पर मांस के लिए पसंद किया जाता है और पाला जाता है, उनमें बर्बरी, जमनापारी, जखराना, ब्लैक बंगाल, सुजोट हैं। इनको पालने से डबल इनकम होती है। क्योंकि बर्बरी, जमनापारी और जखराना नस्ल की बकरियां काफी दूध भी देती हैं।
अब नहीं आती बकरे के मांस के एक्सपोर्ट में यह दिक्कत
एक्सपर्ट्स का कहना है कि मांस एक्सपोर्ट के दौरान मांस की जांच की जाती है कि उसमें केमिकल या अन्य तत्व तो नहीं हैं। टेस्ट पास करने के बाद ही मांस का कंटेनर आगे भेजा जाता है। कई बार बकरी के मांस के कंसाइनमेंट एक्सपोर्ट के दौरान वापस आ चुके हैं। ऐसा इसलिए होता था कि बकरियों को जो चारा खिलाया जाता था उसमें कहीं न कहीं पेस्टीसाइड होता था। लेकिन अब CIRG ने ऑर्गेनिक चारा उगाना शुरू कर दिया है। बकरियों ने यह चारा भी खाया। लेकिन जब उनके मांस की जांच की गई तो उनमें वे केमिकल नहीं मिले जिसकी शिकायतें मिलती थीं। हालांकि CIRG अभी भी इस पर और रिसर्च कर रहा है ताकि मांस में इस समस्या को दूर किया जा सके।
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CIRG मांस से जुड़े कोर्स भी कराता है
बढ़ते कारोबार और मांस की डिमांड को देखते हुए CIRG ने इससे जुड़ा कोर्स भी शुरू किया है। बकरी की कत्लेहाम कैसे की जाती है। जहां बकरी की कत्लेहाम करनी है वहां किस तरह की साफ-सफाई रखनी है। कत्लेहाम करने वाले व्यक्ति को क्या पहनना चाहिए और वह किन साफ-सफाई के स्टैंडर्ड को फॉलो करेगा। बकरी की कैसे कत्लेहाम होगी, उसके टुकड़े कैसे काटे जाएंगे, यह सब कोर्स के दौरान बताया जाएगा। यह काम बड़े-बड़े स्लॉटर हाउस में भी होता है और बाजारों में खुली छोटी-छोटी मीट की दुकानों पर भी होता है। स्लॉटर हाउस को भी ऐसे ही ट्रेन्ड लोगों की जरूरत होती है।