Wednesday, November 29, 2023
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जानिये कुष्मांडा माता से जुड़ी पूरी जानकारी, आइए जाने इसकी महिमा और पूजा के बारे में!

मां पार्वती के चौथा रूप जगत माता हो तुम
मां कुष्मांडा पूरे ब्रह्मांड की विधाता हो तुम
आयु यश बल की दाता उत्तर समृद्धि स्वामिनी हो तुम
इशत हास्य सृष्टि रचयिता सिंह वाहिनी हो तुम
दसों दिशाओं में तेरी कीर्ती सूर्य वाहिनी हो तुम
धनुष गदा जप मालाधारी अष्टभुजाकारिणी हो तुम

माता की पूजा कैसे करे माता रानी को कैसे मनाये जाने

नवरात्रि के चौथे दिन आज हम बात करेंगे कूष्मांडा माता के बारे में जानेगे माता की पूजा कैसे करे माता रानी को कैसे मनाये और इस दिन माता की पूजा करने के क्या है फायदे, भारत की सभ्यता और संस्कृति को संजोए रखना, तीर्थ स्थलों की महिमा को आम भाषा मे हर घर तक पहुंचाना हमारा लक्ष्य है। इसी लिए हमारा प्रयास रहता है कि प्रत्येक दिन धर्म संस्कृति से जुडी अहम बाते आप तक लेकर आये नवरात्रि में आज मां दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप के चरणों में कोटि-कोटि नमन मां कुष्मांडा की सुभाषित से हर किसी का जीवन संपन्न और प्रसन्नता से पर पूर्ण रहे यही अभिलाषा है।

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नौ रुपों में से चतुर्थ रुप देवी कूष्मांडा की पूजा होती है

माता के नवरात्र चल रहे हैं और आज इसका चौथा दिन है नवरात्र के चौथे दिन दुर्गा के नौ रुपों में से चतुर्थ रुप देवी कूष्मांडा की पूजा होती है कुष्मांडा का अर्थ है कुम्हड़ा यानी पेठा की बलि देना और यह चौथा रूप है मां कुष्मांडा का। कुष्मांडा का अर्थ है कुम्हड़ा यानी पेठा की बलि देना मां कुष्मांडा की पूजा करने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है मान्यता है कि देवी पार्वती ने ऊर्जा और प्रकाश को संतुलित करने के लिए सूर्य के केंद्र में निवास किया था संस्कृत भाषा में कूष्माण्डा को कुम्हड़ कहते हैं सृष्टि निर्माण के समय माता कूष्मांडा अपनी मंद हंसी से ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करती हैं

देवी कूष्मांडा के प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं

इसिलए भी इनका नाम कूष्मांडा पड़ा। इनके अंगों की कांति सूर्य के समान ही उज्जवल है देवी कूष्मांडा के प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं माता की आठ भुजाएं हैं इसलिए यह अष्टभुजा देवी भी कहलाती हैं, माता अपने हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल पुष्प, अमृत से भरा कलश, गदा, चक्र और जपमाला धारण करती हैं मां कुष्मांडा का वाहन सिंह है तो वही जो भक्त माता को कुम्हड़े की बलि प्रदान करते हैं माता उससे प्रसन्न होती है। देवी पुराण में बताया गया है कि सृष्टि के आरंभ से पहले अंधकार का साम्राज्य था।

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इन्होंने ही ब्रह्मा विष्णु एवं भगवान शिव की रचना की

उस समय आदि शक्ति जगदम्बा देवी कूष्मांडा के रुप में वनस्पतियों एवं सृष्टि की रचना के लिए जरूरी चीजों को संभालकर सूर्य मण्डल के बीच में विराजमान थी। सृष्टि रचना का जब समय आया तब इन्होंने ही ब्रह्मा विष्णु एवं भगवान शिव की रचना की, इसके बाद सत्, रज और तम गुणों से तीन देवियों को उत्पन्न किया जो सरस्वती, लक्ष्मी और काली रूप में प्रकट हुई सृष्टि चलाने में सहायता प्रदान करने के लिए आदि शक्ति ने ब्रह्मा जी को सरस्वती, विष्णु को लक्ष्मी एवं शिव को देवी काली को सौंप दिया आदि शक्ति की कृपा से ही ब्रह्मा जी सृष्टि के रचयिता बने।

मां का आदिशक्ति रुप देखकर देवताओं की शंका और चिंताओं का निदान हुआ

विष्णु पालनकर्ता और शिव संहारकर्ता पुराणों में मौजूद कथा के अनुसार तारकासुर के आतंक से जगत को मुक्ति दिलाने के लिए यह जरुरी था। मां का आदिशक्ति रुप देखकर देवताओं की शंका और चिंताओं का निदान हुआ। मां इस रुप में भक्तों को यह बताती है कि जो भी भक्त मां कूष्मांडा का ध्यान पूजन करता है उसकी सारी समस्याएं और कष्ट दूर हो जाते हैं इसलिए नवरात्र के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा होती है, मान्याता के अनुसार, मां कुष्मांडा को संतरें रंग बेहद पसंद है ऐस में इस दिन मां कुष्मांडा की पूजा पीले रंग के कपड़े पहनकर करना चाहिए।

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