Wednesday, November 29, 2023
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जानिये सलकनपुर मंदिर से जुड़ी पूरी जानकारी, आइए जाने इस मंदिर की महिमा!

श्रीमद् भागवत कथा के अनुसार जब रक्तबीज नामक देत्य से त्रस्त होकर जब देवता देवी की शरण में पहुंचे, तो देवी ने विकराल रूप धारण कर लिया और इसी स्थान पर रक्तबीज का संहार कर उस पर विजय पाई मां भगवती की इस विजय पर देवताओं ने जो आसन दिया, वही विजयासन धाम के नाम से विख्यात हुआ माता विंध्यवासिनी के इस पावन धाम को हम सलकनपुर के नाम से जानते है। भारत की सभ्यता और संस्कृति को संजोए रखना, तीर्थ स्थलों की महिमा को आम भाषा मे हर घर तक पहुंचाना हमारा लक्ष्य है। इसी लिए हमारा प्रयास रहता है।

सीहोर जिले के विजासन माता को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर है

सलकनपुर मंदिर मध्य प्रदेश राज्य की राजधानी भोपाल के पास सीहोर जिले के विजासन माता को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर है जो हर साल नवरात्री के दौरान भारी संख्या में भक्तों को आकर्षित करता है आपको बता दें कि सलकनपुर मंदिर भोपाल से करीब 70 किलोमीटर दूर स्थित है। सलकनपुर वाली विजासन माता का मंदिर 1000 फीट ऊँची एक पहाड़ी पर बना हुआ है ऐसा माना जाता है कि इस पवित्र मंदिर का निर्माण कुछ बंजारों द्वारा करवाया गया था यह बात लगभग 300 साल से ज्यादा पुरानी है ऐसा माना जाता है कि बिजासन माता के इस मंदिर में जो भी भक्त मनोकामना मागता है वो कभी खाली नहीं जाता। यहां पहाड़ी के ऊपर बिजासन माता अपने दिव्य रूप में विराजमान है।

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बिजासन देवी पार्वती का अवतार हैं

हिंदू धर्म के पुराणों के अनुसार बिजासन देवी पार्वती का अवतार हैं। जब देवी ने देवताओं की प्रार्थना पर भयंकर राक्षस रक्तबीज का वध किया था तो देवी का नाम बिजासन पड़ा था आपको बता दें कि बिजासन देवी की पूजा कई लोग अपनी कुल देवी के रूप में भी करते है। बता दें कि हर साल फरवरी के महीने में सलकनपुर में माघ मेला आयोजित किया जाता है जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु मां विजयासन दरबार में अपनी मनोकामना पूरी होने के बाद जमाल चोटी उतारने के लिए और तुलादान करने के लिए शामिल होते हैं। सलकनपुर माघ मेला एक बहुत बड़ा पशु मेला है, इस मेले में बड़ी संख्या में पशु विक्रेता- क्रेता शामिल होते हैं।

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चार सौ साल पुराने इस मंदिर में स्थापित देवी की मूर्ति सैकड़ों वर्ष प्राचीन है

इसलिए इस मेले को पशुओं की बिक्री का मेला भी कहते हैं। चार सौ साल पुराने इस मंदिर में स्थापित देवी की मूर्ति सैकड़ों वर्ष प्राचीन है मान्यता है कि महिषासुरमर्दिनी के रूप में माँ दुर्गा ने रक्तबीज नाम के राक्षस का वध इसी स्थान पर करके यहां विजयी मुद्रा में तपस्या की इसलिए यह विजयासन देवी कहलायीं मंदिर के गर्भगृह में लगभग 400 साल से 2 अखंड ज्‍योति प्रज्जवलित हैं, एक नारियल के तेल और दूसरी घी से जलायी जाती है इन साक्षात जोत को साक्षात देवी रूप में पूजा जाता है मंदिर में धूनी भी जल रही है। इस धूनी को स्‍वामी भद्रानं‍द और उनके शिष्‍यों ने प्रज्जवलित किया था तभी से इस अखंड धूनी की भस्‍म अर्थात राख को ही महाप्रसाद के रूप में दिया जाता है।

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