राठी गाय भारत की देशी गायों में एक खास स्थान रखती है। इसे ‘राजस्थान की कामधेनु’ के नाम से भी जाना जाता है। यह गाय देश के किसी भी इलाके में आसानी से रह सकती है। किसानों के लिए गाय पालन एक महत्वपूर्ण कृषि गतिविधि है, जिससे उन्हें दूध, गोबर और अन्य कृषि उत्पाद मिलते हैं। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में गाय पालन का विशेष महत्व है क्योंकि यह कई लोगों की आय का मुख्य स्रोत है।
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राठी गाय की पहचान
राठी गाय का रंग भूरा होता है, जिस पर सफेद धब्बे होते हैं। कभी-कभी ये गायें काले रंग में भी सफेद धब्बों के साथ मिलती हैं। शरीर के निचले हिस्से का रंग बाकी शरीर से थोड़ा हल्का होता है। इनका मुंह चौड़ा, आँखों के बीच थोड़ा टेढ़ा, पूंछ लंबी और लटकती हुई त्वचा होती है। राठी गाय की ऊँचाई लगभग 114.92 सेंटीमीटर होती है। इनके सींग बाहर से अंदर की ओर मुड़े होते हैं और आकार में छोटे से मध्यम तक होते हैं। इस नस्ल की एक वयस्क गाय का कुल वजन लगभग 280 से 300 किलोग्राम होता है।
दूध देने की क्षमता
एक राठी गाय एक दुधार में लगभग 1000 से 2800 किलोग्राम दूध देती है। इसके पहले बछड़े को जन्म देने की उम्र 36 से 52 महीने होनी चाहिए। राठी गाय का दुधार काल 15 से 20 महीने का होता है। इस नस्ल की एक गाय एक बार में 1500 लीटर तक दूध दे सकती है और रोजाना 8 से 12 लीटर दूध देती है। उचित देखभाल और अच्छे आहार से किसान इस गाय से प्रतिदिन 18 लीटर तक दूध ले सकते हैं।
राठी गाय की कीमत
राठी गाय की कीमत उसकी उम्र, स्वास्थ्य और दूध देने की क्षमता पर निर्भर करती है। भारत में, एक राठी गाय की कीमत लगभग 20 हजार से 60 हजार रुपये तक हो सकती है। राठी नस्ल की गायों का पालन सबसे अधिक राजस्थान के गंगानगर, जैसलमेर और बीकानेर में किया जाता है। इसके अलावा, गुजरात के पशुपालक भी इस नस्ल की गायों को पसंद करते हैं।
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राठी गाय न केवल दूध के लिए बल्कि अपने मेहनती बैलों के लिए भी जानी जाती है। राठी बैल अधिक तापमान में भी लगातार 10 घंटे तक काम कर सकते हैं।
राठी गाय भारतीय कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।