Friday, September 29, 2023
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रिजर्वेशन से जुड़ा हर क़ानूनी पहलू, सरकार और विपक्षी दल राजनीती की उड़ान भरने में लगी!

एक ओर चुनावी खेल दूसरी ओर बिलों का आना, संसद का विशेष सत्र और अपनी- अपनी सत्ता में अपनी – अपनी राजनीती की उड़ान भरने में लगी सरकार और विपक्षी दल। बिल पर सवाल खड़े कर रहे हैं, कि यह सरकार का चुनावी एजेंडा तो नहीं हैं। इसी के साथ संसद के विशेष सत्र के बीच कैबिनेट की अहम बैठक में महिला आरक्षण बिल को मंजूरी मिल गई है। इसे अब नए संसद भवन में शुरू होने वाली लोकसभा की कार्यवाही में पेश किया गया है। दरअसल महिला आरक्षण बिल पिछले 27 सालों से पेंडिंग में है। सबसे पहले 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने लोकसभा में इस विधेयक को आगे बढ़ाया था, लेकिन पारित नहीं हो पाया था। इसे मूर्त रूप देने के लिए 2010 में आखरी बार प्रयास किया गया था। तब कांग्रेस की अध्यक्षता में केंद्र में यूपीए की सरकार थी। उस वक्त इसे राज्यसभा में पेश किया गया था।

ओबीसी कोटा को लेकर कई दलों ने किया भारी हंगामा

हालांकि ओबीसी कोटा को लेकर कुछ दलों ने भारी हंगामा किया था। लेकिन मार्शलों की मदद से कुछ सांसदों को बाहर कर इसे उच्च सदन में पास कर लिया गया था। उस वक्त लोकसभा में यह गिर गया क्योंकि इसे पास करने के लिए आवश्यक समर्थन नहीं मिल पाया था। खैर इस बिल का समर्थन बीजेपी और कांग्रेस दोनों बड़ी पार्टियां करती रही हैं। लेकिन सरकार से विपक्ष हमेशा की तरह सवाल जवाब तो करता ही रहा है। इस बिल के आने से क्या बद्लाव होने वाले हैं। इससे भारत की विधायिका प्रणाली यानी लोकसभा, राज्यसभा और राज्यों की विधानसभा में महिलाओं की बढ़ चढ़कर भागीदारी सुनिश्चित होगी. इसके लिए आखिरकार महिला आरक्षण बिल को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है।

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एनेक्सी बिल्डिंग में हुई कैबिनेट की बैठक

इससे पहले संसद के विशेष सत्र के बीच एनेक्सी बिल्डिंग में कैबिनेट की बैठक हुई, जिसमें बिल को मंजूरी दे दी गई है। अब इसे लोकसभा में पेश करने की तैयारी की जा रही है। इस बिल की खास बात यह है की संसद के दोनों सदनों में पास हो जाने के बाद संसदीय चुनाव प्रणाली में महिला जनप्रतिनिधियों की भूमिका बड़ी होगी। महिला आरक्षण बिल लोकसभा और राज्य की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीट आरक्षित करने के संबंध में है। इसके प्रस्ताव में यह बात शामिल की गई है कि विधानसभाओं और लोकसभा में कम से कम 33 % सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी।

लोकसभा में सांसदों की संख्या

इसके अलावा एससी/ एसटी और एंग्लो इंडियन महिलाओं के लिए भी आरक्षित सीटों में से कम से कम 33 % महिलाओं के लिए सुनिश्चित करने का प्रावधान है. अगर यह विधेयक संसद के दोनों सदनों में पारित होने के बाद लागू होता है तो इससे सदन में महिलाओं की बड़ी भागीदारी सुनिश्चित होगी। इस बिल को लेकर अगर वर्तमान स्थिति की बात करें तो मौजूदा समय में लोकसभा और राज्य की विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी 15 % से भी कम है। आपको बता दें कि लोकसभा में फिलहाल सांसदों की संख्या 543 है, जिनमें से केवल 78 महिला सदस्य चुनी गई हैं। हालांकि पिछले साल दिसंबर में सरकार की ओर से एक आंकड़ा साझा किया गया था, जिसमें बताया गया था कि राज्यसभा में भी महिलाओं की संख्या 14 % से कम है।

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मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में महिला आरक्षण बिल को लेकर कोई पहल क्यों नहीं

इस विधेयक के पारित हो जाने के बाद राज्य की विधानसभाओं और लोकसभा में इनकी संख्या कम से कम एक तिहाई होना सुनिश्चित हो जाएगा। इससे देश भर में महिलाओं से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने में आसानी होगी। तो वहीं जनता का एक सवाल यह भी है की जिस तरह बीजेपी अब जाकर तत्परता दिखा रही है, तो मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में महिला आरक्षण बिल को लेकर कोई पहल क्यों नहीं हुई? अब जब 2024 के आम चुनाव में महज 6-7 महीने रह गये हैं, आखिर कैसे मान लिया जाये कि बीजेपी महिला बिल को लेकर हमेशा ही गंभीर रही होगी?

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