या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेणु संस्थिता नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः वर्तमान समय में नवरात्र के पावन पर्व चल रहे हैं हर जगह मां की महिमा का गुणगान है इसके प्रति भक्तों का बहुत विश्वास और आस्था होती है, नवरात्र के छठे दिन दुर्गा मां के कात्यायनी रूप की पूजा की जाती है, तो आज हम माँ कात्यायनी के बारे में ही बात करेंगे। भारत की सभ्यता और संस्कृति को संजोए रखना, तीर्थ स्थलों की महिमा को आम भाषा मे हर घर तक पहुंचाना हमारा लक्ष्य है। इसी लिए हमारा प्रयास रहता है कि प्रत्येक दिन धर्म संस्कृति से जुडी अहम बाते आप तक लेकर आये।
नवरात्र के छठे दिन दुर्गा मां के कात्यायनी रूप की पूजा की जाती है
मां का यह रूप अति करुणामयी है, नवरात्र के छठे दिन दुर्गा मां के कात्यायनी रूप की पूजा की जाती है कात्यायन ऋषि के घर उनकी पुत्री के रुप में जन्म लेने के कारण इन्हें कात्यायनी के नाम से जाना जाता है, मां के इस रूप की आभा स्वर्ण की तरह चमकती हुई है, इनके सम्पूर्ण शरीर पर एक अद्धभुत तेज है। मां के माथे पर चमकता हुआ मुकुट है गले में मणियों की माला शोभित है मां का वाहन सिंह है, जिस पर चार भुजाधारी कात्यायनी मां सवार हैं इनके एक हाथ में तलवार शोभ्यमान है तो दूसरे हाथ में कमल का फूल धारण किया हुआ है। एक भुजा अभय मुद्रा में है तो एक भुजा वरमुद्रा में है।
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मां का यह रूप सबकी मनोकामनाएं पूरी करता है
मां का यह रूप अपने भक्त की हर अभिलाषा की पूर्ति करता है जो भी व्यक्ति मां के चरणों में शरण लेता है, उसके सब कष्ट दूर होते हैं और उसकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, वह सुलभता से अपने लक्ष्यों की प्राप्ति करता है मां बुराई व पाप को हराकर अच्छाई का साथ देनी वाली हैं। मां कात्यायनी की उपासना करने से साधक को परम तेज व शक्ति की प्राप्ति होती है, उसके सभी कष्ट, रोग व भय का निवारण होता है, मां की आराधना से जातक की कुंडली के बृहस्पति ग्रह को बल मिलता है। देवी कात्यायनी को ब्रजभूमि की अधिष्ठात्री देवी के रूप में भी जाना जाता है।
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भगवान श्रीकृष्ण ने भी देवी कात्यायनी की पूजा की थी
ब्रजभूमि की कन्याओं ने श्रीकृष्ण के प्रेम को पाने के लिए इनकी आराधना की थी भगवान श्रीकृष्ण ने भी देवी कात्यायनी की पूजा की थी देवी कात्यायनी को मधुयुक्त पान अत्यंत प्रिय है इन्हें प्रसाद रूप में फल और मिठाई के साथ शहद युक्त पान अर्पित करना चाहिए कात्यायनी शब्द किसी व्यक्ति पर आने वाली गंभीरता, अहंकार और नकारात्मक शक्तियों को दूर करने की शक्ति को भी निर्दिष्ट करता है कात्यायनी का तात्पर्य अहंकार के विनाश से भी है जिसके परिणामस्वरूप कमजोरों को महान संघर्ष और कष्ट सहना पड़ता है माता की तीन आंखें और आठ हाथ हैं, जो बुराई के खिलाफ लड़ाई का एक अंतर्निहित हिस्सा हैं।