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स्वामी गोविन्द गिरी के बयान पर ओवैसी का जवाब बोले- मुस्लिम समुदाय को सीधे तौर पर दे रहे धमकी

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By Ankush Baraskar
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Gyanwapi Case :-ज्ञानवापी विवाद को लेकर बयानबाजी का मामला थमने का नाम नहीं ले रहा है। बीते रविवार,4 फरवरी को श्री राम जनमभूमि ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष गोविंद देव गिरि महाराज का मंदिर मस्जिद विवाद को लेकर एक बयान सामने आया था। जिसने विवाद की सियासत को और हवा देने का काम किया है। जिसपर आज अब इस बयान पर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने प्रतिक्रिया दी है।

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क्या है पूरा मामला?

दरअसल, 4 फरवरी को श्री राम जनमभूमि ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष गोविंद देव गिरि महाराज ने पुणे में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान मंदिर मस्जिद विवाद पर बयान देते हुए कहा था की, अगर अयोध्या के बाद अब हमें शांति पूर्वक ज्ञानवापी और कृष्ण जन्मभूमि भी दे दी जाए तो हम दुबारा किसी मस्जिद की तरफ देखेंगे भी नहीं।

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अब स्वामी गोविंन्द देव गिरि के इस बयान पर AIMIM के प्रमुख असदुद्दी ओवैसी ने इस बयान पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की है। उन्होंने स्वामी गोविन्द देव गिरि पर आरोप लगते हुए कहा कि, यह एक तरह से ब्लैकमेल है कि हमें जो चाहिए, वह नहीं दिया गया तो हम वही करेंगे जो छह दिसंबर 1992  को किया था। यह हिंसा का आह्वान है।

जब उनसे यह पूछा गया कि यह धमकी कैसे हुई? हिंदू पक्ष तो केवल शांतिपूर्ण ढंग कह रहा है कि ये तीनों जगह हमें सौंप दी जाए। इस पर ओवैसी ने कहा कि ये लोग झूठे हैं झूठ बोलना इनकी फितरत में है। यह चीजे यह पहले भी कर चुके है। ये लोग कौन होते हैं, मांग करने वाले। यह हिंदुत्व और बहुसंख्यकवाद की राजनीति है।

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ओवैसी को कानून और मुख्यमंत्री पर भी नहीं भरोसा

ज्ञानवापी मामले पर फैसला गलत फैसला है। बाबरी मस्जिद मामले में तो खुदाई हुई लेकिन ज्ञानवापी मामले में सर्वे हुआ। उत्खनन और सर्वेक्षण में अंतर है। सुप्रीम कोर्ट में खुदाई रिपोर्ट को वैध नहीं माना गया था और कोर्ट ने साफ कहा था कि अयोध्या में मस्जिद निर्माण के लिए कोई मंदिर नहीं तोड़ा गया था। ज्ञानवापी मामले में आप कह रहे हैं कि सर्वे कराया गया था। सर्वेक्षण और उत्खनन में अंतर है। हमने यह स्पष्ट कर दिया है कि ज्ञानवापी मस्जिद के निर्माण के लिए किसी भी मंदिर को नहीं तोड़ा गया। हम सर्वे रिपोर्ट को कोर्ट में चुनौती देंगे।

साथ ही उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि संविधान के आर्टिकल 32 का पालन होना चाहिए. जहां तक इस मुल्क के मुस्लिमों का सवाल है, हमारा इस देश के प्रधानमंत्री पर को कोई भरोसा नहीं रहा। क्योंकि प्रधानमंत्री एक खास विचारधारा के आधार पर अपना संवैधानिक कर्तव्य निभा रहे हैं, जो हमें कतई मंजूर नहीं है।

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