हम सभी ने होश संभालते ही दीपावली के दूसरे दिन हमारे परिवार और आस- पास रहने वाले लोगों को गौवर्धन पर्वत पूजन करते हुए देखा होगा गौवंश के गौबर से बने सांकेतिक पर्वत बनाना एवं उसकी पूजा- अर्चना करना। नगरों और शहरों में भी इस पूजा का महत्व हम सभी जानते थे लेकिन ग्रामीण इलाकों में तो इसका महत्व कई गुना बढ़ जाया करता था।
गौवर्धन पर्वत पूजन का महत्त्व

गौवर्धन पर्वत पूजन की कहानी भी बड़ी रोचक है की किस तरह भगवान श्री कृष्ण जी ने अपनी तरुण आस्था में सभी गोकुल वासियों की रक्षा के लिए अपनी कनिष्ठ उंगली के माध्यम से पर्वत उठाया था और भगवान श्री कृष्ण को कोई नुकसान न हो इसलिए गौकुल वासियों (सम्पूर्ण समाज) ने गौवर्धन पर्वत को लाठी – डंडों का सहारा दिया था तब से लेकर आज तक हम सभी गौवंश के महत्व को जानते है उस पर्वत का महत्व जानते हैं की संपूर्ण चर- अचर जगत को वनों और पहाड़ों से क्या – क्या लाभ मिलता है।
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गौवर्धन पर्वत पूजन एक वैश्विक कार्यक्रम
फिर प्रश्न खड़ा होता है कि गौवर्धन पर्वत तो एक ही है अन्य स्थानों पर गौवर्धन पर्वत तो है नही ? फिर सम्पूर्ण समाज क्यूं पूजा करें ? यदि हम गहनता से विचार करें और भगवान श्री कृष्ण जी के किए गए कार्यों को समझे तो समझ आयेगा की यह तो एक वैश्विक कार्यक्रम है पर्यावरण संरक्षण का अपने – अपने स्थानों पर ऐसे सभी साधनों और माध्यमों को संरक्षित करना जिससे समाज और आने वाले कल को सुरक्षित रखा जा सके। एक लंबे समय तक हम सभी वनों और पहाड़ों के इर्द गिर्द रहे है पहाड़ों और वनों को बिना नुकसान पहुंचाये बिना हम उस वातावरण का हिस्सा रहे लेकिन अधिक की चाहत ने सब असंतुलित कर दिया।
कल्पना करें यदि पहाड़ न रहे, वन संपदा न रहे तो क्या मैदानी क्षेत्रों में प्रवाहित नदियों में जल रहेगा ? औषधीय वनस्पति रहेगी ? पर्यावरण जगत स्ंतुलित रह पायेगा ? बिलकुल नहीं कदापि नहीं
कैसे हुई गौवर्धन पर्वत पूजन की शुरुआत
वर्तमान समय में वनों और पहाड़ों के संतुलन को बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है जिस तरह व्यापारी करण के चलते वनों की अनाधून कटाई, और अधिक की चाहत से वन औषधीयों का शोषण, विकास की रफ्तार से संकुचित होते पहाड़, कृषि के लिए बढ़ता मैदानी क्षेत्रफल, रहने के लिए
कंक्रीट की बड़ी बड़ी दिवारे सब पर्यावरण असंतुल के कारणों में से एक है।
तब हमें क्या करना चाहिए अब हमे अपने लिए और आने वाले कल के लिए इस पर्यावरण को संरक्षित रखने में सहायक बनना चाहिए और यही संदेश योग योगेश्वर श्रीकृष्ण जी ने गौवर्धन को संरक्षित रख कर सम्पूर्ण समाज को दिया। इसी भाव को पुनः जागृत कर पर्यावरणविद्, नर्मदा समग्र के संस्थापक स्व. श्री अनिल माधव दवे जी ने नर्मदा समग्र संस्था की महत्वपूर्ण गतिविधियों में से एक पर्वत पूजन का कार्यक्रम कार्यकर्ताओं और पर्यावरण प्रेमियों के माध्यम से शुरू करवाया। यह कार्यक्रम नर्मदा समग्र प्रतिवर्ष गौवर्धन पर्वत पूजन तिथि से आरंभ करता है और कार्यकर्ता अपने – अपने समयानुकूल इस कार्यक्रम को सभी के साथ मिलकर अपने स्थानों में करते है।

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कार्यकर्ताओ द्वारा दिया विशेष सन्देश
इस कार्यक्रम में भाव यही रहता है की मां नर्मदा जी के दोनो तरफ विशाल श्रृंखला से युक्त मैकल पर्वत श्रेणी, सतपुड़ा पर्वत श्रेणी और विंध्याचल पर्वत श्रेणी मां नर्मदा को सतत जल प्रदान करते है, हमें औषधियां, फल- फूल, प्राण वायु, कीमती धातु, उपयोगी ईंधन और अपनी भुजाओं में समेटे जल से हमें 12 महनों सिंचित जल एवं बांधो पर निर्मित बिजली संयंत्रों से हमें मिलती ऊर्जा इन्हीं पर्वतों से प्राप्त होती है। इन्हे संरक्षित रखने की जिम्मेदारी और कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर इस कार्यक्रम के माध्यम से मिलता है और पर्यावरण संरक्षण का भाव जागृत होता है। इसी भाव के साथ आज घाट टोली जहानपुर जिला सीहोर के कार्यकर्ताओं द्वारा बांद्राभान से लगे विंध्याचल पर्वत इकाई का पूजन किया गया जिसमें मुख्य रूप से श्री हरी सिंह मीणा, डॉ राजकुमार मीणा, उप सरपंच मुकेश सराठे, नर्मदा समग्र भाग समन्वयक नवीन बोड़खे , सत्यम मीणा, अभी थापक, अंकित मीणा, आकाश मीणा, सुंदरम मीणा, कन्हैया मीणा, सत्यम मीणा एवं भागवत मीणा उपस्थित थे।