अयोध्या राम मंदिर के विवाद सुलझने के बाद अब एक और मंदिर मस्जिद विवाद पर कोर्ट ने अपना फैसला साफ कर दिया है। लाक्षागृह-कब्रिस्तान विवाद मामला आज 53 साल 8 महीने 20 दिन के लम्बे इंतजार के बाद आखिरकार कोर्ट ने सोमवार, 5 फरवरी को अपना फैसला साफ कर दिया है। लाक्षागृह-कब्रिस्तान विवाद मामला में बीते दिन डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन कोर्ट ने हिंदू पक्ष के हक में फैसला सुनाया है। 53 साल चले मुकदमे के बाद कोर्ट ने पाया कि बरनावा स्थित जिस जगह को कब्रिस्तान बताया जा रहा था, वह जगह महाभारत कालीन लाक्षागृह है।
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जाने क्या है पूरा विवाद
उत्तर प्रदेश के बरनावा गांव में सड़क किनारे ऊंचे टीले पर लाक्षागृह होने का दवा किया गया है। बरनावा गांव के रहने वाले मुकीम खान ने 31 मार्च 1970 में मेरठ की अदालत में वाद दायर कर इसे कब्रिस्तान और बदरुद्दीन की दरगाह बताते हुए यह दावा ठोक दिया था कि यहां पर कभी लाक्षागृह था ही नहीं। मुकीम खान ने लाक्षागृह गुरुकुल के संस्थापक ब्रह्मचारी कृष्णदत्त महाराज को प्रतिवादी बनाया था। उन्होंने दावा किया था कि बरनावा स्थित लाक्षागृह टीले पर शेख बदरुद्दीन की मजार और एक बड़ा कब्रिस्तान मौजूद है।
वहीं, प्रतिवादी हिन्दू पक्ष की तरफ से यह कहा जा रहा था कि यह पांडवों का लाक्षागृह है। यहां महाभारत कालीन सुरंग, पौराणिक दीवारे और प्राचीन टीला भी मौजूद है। ASI यहां से महत्वपूर्ण पुरावशेष भी प्राप्त कर चुका है। लाक्षागृह के अंदर से जिस सुरंग से बचकर पांडव निकले थे, वह यहां ही मौजूद हैं।
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वादी-प्रतिवादी अदालत में साक्ष्य समय-समय पर पेश कर इस लड़ाई को लड़ते रहे। वादी और प्रतिवादी की मौत होने के बाद केस की पैरवी दूसरे लोगों ने करनी शुरू कर दी। वर्ष 1997 में मेरठ को विभाजित कर बागपत को जनपद बनाया गया तो यह वाद बागपत की अदालत में ट्रांसफर हो गया। यानी दोनों ही जनपदों में वाद की सुनवाई लगभग 27-27 साल हुई। जिसके बाद 31 मार्च 1970 में दर्ज इस विवाद की 375 तारीखों के बाद आखिर कर इसकी अंतिम सुनवाई 5 फरवरी 2024 को की गई। जिसमे कोर्ट ने साफ तौर पर कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए बरनावा स्थित जिस जगह को कब्रिस्तान बताया जा रहा था, वह जगह महाभारत कालीन लाक्षागृह बताया है।