Origin Shivling: कहाँ से शुरू हुई शिवलिंग की पूजा,कौन था पहला पुजारी जाने पुराणों और शास्त्रों के अनुसार इसका रहस्य शिवलिंग की पूजा प्राचीन काल से होती आ रही है। सावन हो, शिवरात्रि हो या कोई और दिन, हर हिंदू घर में रोजाना शिवलिंग की पूजा की जाती है।लेकिन क्या आप जानते हैं कि सबसे पहले शिवलिंग की पूजा किसने की और इसके क्या लाभ हैं? आइए जानते हैं शिवलिंग से जुड़ी कुछ खास बातें।
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शिवलिंग की उत्पत्ति और पूजा को लेकर अलग-अलग पौराणिक कथाएं हैं। आइए जानते हैं शिवलिंग पूजा की क्या है कथा।
आपको बता दें कि शिवलिंग कई प्रकार के होते हैं। लेकिन पूरे भारत में केवल 12 ही ज्योतिर्लिंग मौजूद हैं। ज्योतिर्लिंगों को अपने आप प्रकट हुआ माना जाता है। ज्योतिर्लिंग बताते हैं कि शिवलिंग प्रकाश से ही प्रकट हुए हैं।
लिंग पुराण के अनुसार इस तरह से हुई शिवलिंग की पूजा की शुरुआत
लिंग पुराण में मौजूद पौराणिक कथा के अनुसार जब दक्ष प्रजापति ने अपने यज्ञ में भगवान शिव का हिस्सा नहीं दिया तो इससे क्रोधित होकर माता सती ने यज्ञ कुंड में अपने शरीर का बलिदान दे दिया। पुराण के अनुसार जब यह समाचार भगवान शिव को मिला तो वे क्रोधित हो गए और दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट कर दिया। बाद में सती से वियोग में आकर उन्होंने संसार के सारे इंद्रियों को खो दिया और नग्न अवस्था में पृथ्वी पर घूमने लगे। वे इसी अवस्था में एक गांव पहुंच गए। शिव को देखकर वहां की स्त्रियां भगवान शिव के प्रति आकर्षित हो गईं। स्त्रियों के आकर्षण को देखकर ऋषियों ने शिव को श्राप दिया। श्राप के कारण भगवान शिव का लिंग तुरंत ही अलग हो गया। जिससे तीनों लोकों में कोहराम मच गया।
सभी देवता और ऋषि चिंतित होकर ब्रह्माजी के पास शरण गए। ब्रह्माजी ने अपनी योग शक्ति से पूरी घटना को जान लिया और सभी देवताओं और ऋषियों के साथ शिवजी के पास पहुंचे। ब्रह्माजी ने शिवजी से प्रार्थना की कि आप अपना लिंग पुनः धारण करें नहीं तो तीनों लोकों का नाश हो जाएगा। ब्रह्माजी की प्रार्थना सुनकर शिवजी ने कहा कि आज से मेरे लिंग की ही पूजा सभी लोग करने लगें। फिर मैं अपना लिंग धारण करूंगा।
शिवजी की बात सुनकर सबसे पहले ब्रह्माजी ने सोने का शिवलिंग बनाकर पूरे विधि-विधान से पूजा की। इसके बाद ऋषि-मुनियों ने भी शिवलिंग की पूजा शुरू कर दी। और इस तरह से ब्रह्मांड में शिवलिंग पूजा की शुरुआत हुई।
शिव पुराण के अनुसार इस तरह से हुआ शिवलिंग का निर्माण
शिव पुराण के अनुसार एक बार ब्रह्मा और विष्णु में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया था। जब उनके विवाद बहुत बढ़ गए तो एक अग्नि की लपटों से घिरी हुई आग की गेंद प्रकट हुई। यह आग की गेंद आकर भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के बीच में स्थापित हो गई। इसके बाद एक आकाशवाणी हुई कि जो इस आग की गेंद की शुरुआत और अंत का पता लगा लेगा वही श्रेष्ठ होगा। ब्रह्मा और विष्णु ने हजारों वर्षों तक इसके रहस्य को खोजने की कोशिश की लेकिन असफल रहे। निराश होकर दोनों देवता उस स्थान पर वापस आ गए जहां से वे आग की गेंद की शुरुआत और अंत जानने के लिए गए थे। वहां पहुंचकर उन्हें ओम की ध्वनि सुनाई दी और भगवान शिव परब्रह्म के रूप में प्रकट हुए। उन्होंने आग की गेंद का रहस्य बताया और ब्रह्मा विष्णु ने उनके उस आग की गेंद को प्रणाम किया। ब्रह्मा विष्णु की प्रार्थना पर वह आग की गेंद एक लिंग में परिवर्तित हो गई जिसकी पूजा ब्रह्मा और विष्णु ने की। इसके बाद से ही ब्रह्मांड में शिवलिंग की पूजा का चलन शुरू हुआ।
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शिवलिंग पूजा के लाभ
- शिवलिंग की विधि-विधान से पूजा करने से व्यक्ति को संतान, धन, विद्या और मोक्ष की प्राप्ति होती है। जिस स्थान पर शिवलिंग की पूजा की जाती है वह स्थान चाहे तीर्थस्थल न हो तो भी तीर्थस्थल बन जाता है।
- जो व्यक्ति किसी तीर्थस्थल की मिट्टी से शिवलिंग बनाकर हजार, लाख या करोड़ बार पूजा करता है वह भक्त पुण्य के प्रभाव से शिव बन जाता है। वहीं जो व्यक्ति किसी तीर्थस्थल की मिट्टी, राख, गोबर और रेत से शिवलिंग बनाकर एक बार भी विधि-विधान से पूजा करता है वह व्यक्ति स्वर्ग लोक में निवास करता है।
- जिस स्थान पर शिव की सदैव पूजा होती है उस स्थान पर मरने वाला व्यक्ति शिवलोक को प्राप्त करता है और जो व्यक्ति हमेशा शिव-शिव-शिव नाम का जाप करता है वह अत्यंत पवित्र और परमधाम को प्राप्त करता है। केवल शिव शब्द का उच्चारण करने मात्र से व्यक्ति सभी प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है।