Rakshabandhan 2024: जाने क्या है राखी बांधने का शुभ मुहूर्त, इस देवता की पूजा के बाद मनाये पर्व

By Ankush Baraskar

Rakshabandhan 2024: जाने क्या है राखी बांधने का शुभ मुहूर्त, इस देवता की पूजा के बाद मनाये पर्व

Rakshabandhan 2024: जाने क्या है राखी बांधने का शुभ मुहूर्त, इस देवता की पूजा के बाद मनाये पर्व राखी का त्योहार हर साल सावन महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस त्योहार में दोपहर में पूर्णिमा होना आवश्यक है, साथ ही भद्रा वर्जित होती है। पुराणों में भद्रा को सूर्य की पुत्री और शनि की बहन बताया गया है, जो किसी भी शुभ कार्य में नहीं होनी चाहिए। राखी के दिन प्रातःकाल स्नान करके देवता, पितरों और ऋषियों को स्मरण किया जाता है। इसके बाद गाय के गोबर से लीप-पोतकर शुद्ध स्थान पर राक्षी सूत्र (राखी) को रखकर विधिपूर्वक पूजा की जाती है। फिर राखी को दाएं हाथ पर बांधा जाता है। राखी बांधते समय निम्नलिखित मंत्र का जाप किया जाता है:

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येन बद्धो बलि राजा दनवेन्द्रः महाबलः।
तेन त्वामनु बध्नामि रक्ष मा चल मा चल।।

राखी बांधने का मुहूर्त

इस वर्ष विक्रम संवत 2081 में सावन शुक्ल पूर्णिमा (19 अगस्त 2024) को पूर्णिमा सुबह 03:05 से रात 11:55 तक रहेगी। चंद्रमा के मकर राशि में होने के कारण भद्रा पाताल लोक में निवास करेगी, इसलिए भद्रा दोष भी लागू नहीं होगा। सोमवार 19 अगस्त 2024 को सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक श्रावण पूजन के बाद राखी बांधना शुभ सिद्ध होगा।

राखी की कहानी

एक बार देवताओं और दानवों के बीच बारह वर्षों तक युद्ध हुआ, जिसमें देवता पराजित हो गए और दानवों ने स्वर्ग पर कब्जा कर लिया। पराजय से निराश होकर इंद्र अपने गुरु बृहस्पति के पास गए और कहने लगे कि लड़ाई तो मेरे लिए आवश्यक है, जबकि अब तक हम युद्ध में केवल हार ही पाए हैं। इंद्र की पत्नी इंद्राणी भी यह सब सुन रही थी। उन्होंने कहा कि कल श्रावण शुक्ल पूर्णिमा है, मैं विधि-विधान से राक्षी सूत्र तैयार करूंगी, तुम उसे ब्राह्मणों से बंधवा लो, इससे तुम अवश्य विजयी हो जाओगे। दूसरे दिन इंद्र ने राक्षी विधान से राखी बंधवाई। इसके बाद जब इंद्र ऐरावत हाथी पर सवार होकर युद्ध भूमि पर पहुंचे तो दानव इतने डर गए कि भाग खड़े हुए। इस प्रकार राक्षी विधान के प्रभाव से इंद्र विजयी हुए और तभी से इस त्योहार की शुरुआत हुई।

श्रावण पूजा

सावन महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को पिता-भक्त पुत्र श्रावण कुमार अपने अंधे माता-पिता के लिए रात में जल लाने गए थे। राजा दशरथ जी शिकार की खोज में कहीं छिपे हुए थे। उन्होंने जल के घड़े की आवाज को जानवर की आवाज समझकर एक वार करने वाला बाण चला दिया, जिससे श्रावण की मृत्यु हो गई। श्रावण की मृत्यु की खबर सुनकर उसके अंधे माता-पिता विलाप करने लगे। तब दशरथ जी ने अनजाने में किए गए अपराध की क्षमा मांगी और श्रावणी के दिन श्रावण पूजा का प्रचार किया। तभी से श्रावण पूजा होने लगी और पहली राखी श्रावण को ही अर्पित की जाती है।

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श्रावणी उपाकर्म

सावन महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को श्रावणी उपाकर्म का समय माना जाता है। यह दिन विशेषकर ब्राह्मणों का त्योहार है, जिसमें वेदों का पाठ शुरू किया जाता है। इस दिन यज्ञोपवीत (जनेऊ) की पूजा की जाती है और पुराने यज्ञोपवीत को निकालकर नया धारण किया जाता है। यह परंपरा प्राचीन भारत की समृद्ध परंपरा का हिस्सा है, जिसमें गुरु अपने शिष्यों के साथ यह अनुष्ठान किया करते थे।

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