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किसानो की होगी मौज ! चिलचिलाती गर्मी में भी ताबड़तोड़ उत्पादन देगी यह सलाद की फसल, कम खर्चे में तिगुना मुनाफा

जिसकी खेती पूरे भारत में की जाती है. लोग इसे कच्चा और पकाकर दोनों तरह खाते हैं। गाजर में कैरोटीन और विटामिन ए भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जो आंखों के लिए बहुत फायदेमंद होता है। आइए, गाजर की खेती के तरीके के बारे में विस्तार से जानते है.

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गाजर की खेती:- गर्मी के समय में शादियों का सीजन होता है, शादी और अन्य प्रोगामों में सलाद के लिए और हलवा बनाने में प्रयोग होने वाला गाजर जड़ वाली सब्जी की फसल है, जिसकी खेती पूरे भारत में की जाती है. लोग इसे कच्चा और पकाकर दोनों तरह खाते हैं। गाजर में कैरोटीन और विटामिन ए भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जो आंखों के लिए बहुत फायदेमंद होता है। आइए, गाजर की खेती के तरीके के बारे में विस्तार से जानते है.

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गाजर ठंडी जलवायु वाली फसल है, इसका बीज 7.5 से 28 डिग्री सेल्सियस तापमान पर अंकुरित हो सकता है, लेकिन जड़ों की अच्छी वृद्धि और रंग के लिए 15-20 डिग्री सेल्सियस तापमानअच्छा माना जाता है.गाजर की खेती के लिए दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है. बुवाई के समय खेत की मिट्टी अच्छी तरह से भुरभुरी होनी चाहिए ताकि जड़ें अच्छी तरह से बन सकें। साथ ही, भूमि में जल निकास होना अतिआवश्यक है.

बुवाई करने से पहले खेत को समतल कर लें और 2 से 3 गहरी जुताई करें। हर जुताई के बाद पाटा लगाएं ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए और उसमें गोबर की खाद अच्छी तरह से मिल सके। एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए लगभग 4 से 6 किलोग्राम गाजर के बीज की आवश्यकता होती है। बुवाई से पहले 24 घंटे के लिए बीजों को पानी में भिगोने से अंकुरण में तेजी आती है। गाजर की बुवाई दो तरीकों से की जा सकती है:

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इस विधि में खेत में 45 सेंटीमीटर की दूरी पर 15 से 20 सेंटीमीटर ऊंची मेड़ें बना ली जाती हैं। इन मेड़ों पर बीच में 2 से 3 सेंटीमीटर की गहराई में बीज बोए जाते हैं। इस विधि में बीजों को पूरे खेत में समान रूप से छिटा दिया जाता है, फिर हल्के हाथ से मिट्टी से ढक दिया जाता है। बुवाई का आदर्श समय: अगस्त से सितंबर या अक्टूबर से नवंबर तक का समय होता है.

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नियमित रूप से सिंचाई करें, लेकिन जलभराव से बचें। खेत में खरपतवार निकालते रहें ताकि वे पोषक तत्वों को न छीन सकें।आवश्यकतानुसार खाद और उर्वरक डालें। बुवाई के 90 से 120 दिनों बाद गाजर की कटाई की जा सकती है, जब जड़ें पूरी तरह से विकसित हो जाएं।

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