भोपाल का अनोखा मंदिर देवी माँ को चप्पल-जूते का किया जाता दान, 25 साल से चली आ रही परंपरा

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Bhopal News: देशभर में कई देवी माँ के मंदिर हैं, जहाँ भक्त मंदिर में प्रवेश से पहले चप्पल-जूतों को बाहर उतार देते हैं। लेकिन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में एक ऐसा मंदिर है, जहां देवी माँ को चप्पल और जूते दान करने की परंपरा है यह मंदिर भोपाल के कोलार इलाके की पहाड़ी पर स्थित माँ कामेश्वरी का शक्तिपीठ है, जिसे लोग जीजाबाई (बहन) माता के मंदिर के नाम से भी जानते हैं। यहाँ देवी माँ को ‘चप्पल वाली माता’ के नाम से भी पुकारा जाता है।

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पहाड़ी पर मंदिर बनाने का विचार कैसे आया

इस मंदिर की स्थापना 1999 में मंदिर के प्रमुख पुजारी ओमप्रकाश महाराज द्वारा की गई थी। मंदिर के एक अन्य पुजारी सुभाष शर्मा बताते हैं कि गुरुजी ओमप्रकाश महाराज पहले दशहरा पाती मंदिर में पूजा करते थे। उन्हें लगा कि पास की पहाड़ी पर माँ कामेश्वरी का प्राचीन दरबार है, और वहां माँ के बाल रूप की स्थापना होनी चाहिए। तब गाँव वालों के सहयोग से उन्होंने मंदिर की स्थापना की और तभी से माँ की पूजा एक बेटी के रूप में की जाने लगी।

देवी माँ की देखभाल बेटी की तरह की जाती है

मंदिर के प्रमुख पुजारी ओमप्रकाश महाराज बताते हैं कि मंदिर स्थापित करने से पहले उन्होंने इस पहाड़ी पर भगवान शिव और पार्वती का विवाह समारोह करवाया था। इस विवाह में उन्होंने माँ पार्वती को बेटी के रूप में विदा किया था, इसलिए आज भी देवी की पूजा एक बेटी के रूप में की जाती है। क्षेत्र के लोग माँ को अपनी बहन मानते हैं, इसलिए उन्हें जीजाबाई कहा जाता है।

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भोपाल का अनोखा मंदिर देवी माँ को चप्पल-जूते का किया जाता दान, 25 साल से चली आ रही परंपरा 1

चप्पल-जूते दान करने की परंपरा कैसे शुरू हुई

मंदिर के पुजारी ओमप्रकाश महाराज देवी माँ की पूजा अपने बेटी के रूप में करते हैं। इसी परंपरा के अंतर्गत देवी का प्रतिदिन बाल रूप में श्रृंगार किया जाता है, जिसमें चश्मा, छाता, कपड़े, इत्र, कंघी और चप्पल शामिल होती हैं। माँ के वस्त्र दिन में 2-3 बार बदले जाते हैं और उनका नियमित श्रृंगार किया जाता है। भक्त यहाँ देवी सिद्धिदात्री के बाल रूप को देखते हैं और उनकी सेवा बेटी की तरह करते हैं।

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चप्पल दान से देवी माँ होती हैं प्रसन्न

भक्तों का मानना है कि इस मंदिर में चप्पल दान करने से देवी माँ प्रसन्न होती हैं और भक्तों की मनोकामनाएँ पूरी करती हैं। लोग नए चप्पल, जूते और सैंडल देवी के चरणों में अर्पित करते हैं। इस परंपरा को निभाने वाले भक्तों में सिर्फ स्थानीय लोग ही नहीं, बल्कि विदेशों से आने वाले श्रद्धालु भी शामिल होते हैं। वे देवी माँ के लिए चप्पल और जूते भेजते हैं मंदिर परिसर में फूल-माला बेचने वाली मनी बताती हैं कि वह पिछले 20 वर्षों से यहाँ दुकान चला रही हैं। उन्होंने कहा, “चप्पल वाली माता के आशीर्वाद से मेरे जीवन में समृद्धि आई। मैंने भी चप्पल दान की, और मेरी सभी इच्छाएँ पूरी हुईं।” वहीं, दो साल से नियमित रूप से मंदिर आने वाले भक्त बाल किशन राजपूत बताते हैं कि आज उन्होंने देवी माँ के लिए चप्पल और श्रृंगार सामग्री दान की है।

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दान का क्या होता है

मंदिर के पुजारी सुभाष शर्मा कहते हैं कि दान की गई चप्पल-जूतों और कपड़ों को गरीब और जरूरतमंदों में वितरित किया जाता है। इसके अलावा, ये कपड़े और चप्पल भोपाल के अनाथालयों में भी भेजे जाते हैं। यह मंदिर न सिर्फ श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है, बल्कि समाज सेवा का माध्यम भी बन गया है।

मंदिर में नहीं है दान पेटी

इस पहाड़ी मंदिर में कोई दान पेटी नहीं है और न ही यहाँ कोई ट्रस्ट या समिति है। यह मंदिर भक्तों द्वारा स्वेच्छा से दिए गए दान से संचालित होता है मंदिर परिसर में 12 ज्योतिर्लिंग, महाकाली, नवदुर्गा, हनुमान, राम दरबार और नवग्रह के मंदिर भी हैं। इसके अलावा, यहाँ एक करवा चौथ मंदिर भी है, जहाँ महिलाएँ अपने पतियों की लंबी उम्र के लिए व्रत रखकर माँ पार्वती की पूजा करती हैं।

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