
बकरी को अक्सर ‘गरीब की गाय’ कहा जाता है क्योंकि इसे पालना आसान और सस्ता होता है। बकरी आकार में छोटी होती है और इसके पालन-पोषण पर ज्यादा खर्च नहीं आता। इसी वजह से आर्थिक रूप से कमजोर लोग भी इसे आसानी से पाल सकते हैं, इसलिए इसे ‘गरीब का ATM’ भी कहा जाता है।
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बहराइच के किसान जियाउल कई सालों से बकरी पाल रहे हैं और उन्हें इससे अच्छा मुनाफा मिल रहा है। उनके पास दो-तीन नस्लों की बकरियां हैं, जिनका वह बहुत ही ध्यान से पालन करते हैं।
जियाउल ने बकरी पालन के लिए करीब 500 वर्ग फीट का बकरी घर बनवाया है। इसमें बकरियों को चारा और पानी देने के लिए एक बड़ा लोहे का स्टैंड लगवाया गया है, ताकि बकरियां आसानी से चारा खा सकें और गिरने से बच सकें।
जमीन पर मिट्टी का फर्श बनवाया गया है, ताकि बकरियों को चलने-फिरने में कोई दिक्कत न हो। इस घर में उनके बच्चों सहित 30 से 40 बकरियां आराम से रह रही हैं।
बरारी नस्ल की बकरियां मुख्य रूप से मांस उत्पादन के लिए पाली जाती हैं। यह नस्ल पंजाब, राजस्थान, आगरा और उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में पाई जाती है। यह मध्यम आकार की होती है और इसका शरीर संकरा होता है। इनके कान छोटे और चपटे होते हैं। नर बकरी का वजन 38-40 किलो और मादा बकरी का वजन 23-25 किलो होता है।
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नर बकरी की लंबाई करीब 65 सेंटीमीटर और मादा की लंबाई करीब 75 सेंटीमीटर होती है। इस नस्ल में कई तरह के रंग होते हैं, लेकिन सफेद शरीर पर हल्के भूरे रंग के धब्बे वाली बकरी ज्यादा देखने को मिलती है। नर और मादा दोनों की दाढ़ी घनी होती है। औसतन प्रति दिन 1.5-2.0 किलो दूध का उत्पादन होता है और एक बार में 140 किलो तक दूध प्राप्त किया जाता है