MP High Court का बड़ा फैसला,ग्रैच्युटी कर्मचारी का हक, माँगने की ज़रूरत नहीं

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है जिसमें कहा गया है कि ग्रैच्युटी कर्मचारी का कानूनी अधिकार है और इसके लिए किसी भी कर्मचारी को अलग से आवेदन देने की जरूरत नहीं है। कोर्ट ने साफ कहा कि नियोक्ता की जिम्मेदारी है कि वह खुद ग्रैच्युटी की राशि तय करे और 30 दिनों के अंदर भुगतान करे।

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क्या था मामला?

लिटिल वर्ल्ड हायर सेकेंडरी स्कूल, जबलपुर ने हाई कोर्ट में सात अपीलें दायर की थीं। इन अपीलों में कहा गया कि शिक्षिका मौसमी बनर्जी और अन्य को ग्रैच्युटी देने का आदेश नियंत्रण प्राधिकारी और सहायक श्रम आयुक्त ने दिया है, जिसमें 10% ब्याज भी शामिल है।

स्कूल की ओर से दलील दी गई कि शिक्षकों ने ग्रैच्युटी के लिए आवेदन ही नहीं दिया था और बाद में देरी से आवेदन किया। इसी आधार पर उन्होंने इस आदेश को चुनौती दी थी।

कोर्ट का दो टूक जवाब

मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति विवेक जैन की खंडपीठ ने अपील को खारिज करते हुए कहा कि ग्रैच्युटी एक वैधानिक हक है और इसे 1972 के ग्रैच्युटी कानून और एमपी नियमों के तहत सुरक्षित रखा गया है।कोर्ट ने साफ किया कि नियोक्ता कर्मचारी के आवेदन का इंतज़ार नहीं कर सकता, उसे 30 दिन के भीतर ग्रैच्युटी देना ही होगा।

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देरी को आधार बनाकर ग्रैच्युटी रोकी नहीं जा सकती

कोर्ट ने कहा कि देरी को आधार बनाकर किसी कर्मचारी को ग्रैच्युटी से वंचित नहीं किया जा सकता। ये तर्क कानून के खिलाफ है।इस फैसले के बाद अब ऐसे तमाम कर्मचारियों को राहत मिलेगी जिनकी ग्रैच्युटी की राशि बिना किसी कारण रोकी जाती है।

Ankush Baraskar

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