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MP Samachar: पराली जलाने की जगह उगाई नई सोच, शिवपुरी के किसानों का अनोखा तरीका सबको भाया

MP Samachar: हर साल सर्दियों के आते ही पराली जलाने का मुद्दा गरमा जाता है। किसानों पर आरोप लगता है कि फसल काटने के बाद खेतों में बची पराली जलाने से वायु प्रदूषण बढ़ता है और शहरों का AQI (एयर क्वालिटी इंडेक्स) खतरनाक स्तर तक पहुंच जाता है। लेकिन मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के किसान इन आरोपों को खारिज करते हुए एक नई राह पर चल रहे हैं। ये किसान पराली जलाने की पुरानी परंपरा से हटकर इसे उपयोगी बनाने में जुटे हैं।

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पराली जलाने के नुकसान

किसान बताते हैं कि पराली जलाने से खेतों की उर्वरता घटती है और पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचता है। इसके साथ ही कई स्वास्थ्य और जैविक नुकसान भी होते हैं:

  1. प्रदूषण: पराली जलाने से हानिकारक गैसें निकलती हैं, जो हवा को जहरीला बना देती हैं।
  2. स्वास्थ्य पर असर: प्रदूषित हवा से सांस की बीमारियां और दमा जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं।
  3. मिट्टी की उर्वरता घटती है: जलाने से मिट्टी में मौजूद लाभकारी जीवाणु खत्म हो जाते हैं।
  4. पशुओं को खतरा: पराली जलाने से आसपास के छोटे जीव-जंतु मर जाते हैं।

पराली जलाने के कारण

अभी भी भारत में पराली जलाने के मामले पूरी तरह खत्म नहीं हुए हैं। ICAR की रिपोर्ट के अनुसार, 15 सितंबर से 18 नवंबर 2024 के बीच देशभर में 27,319 मामले दर्ज हुए। इनमें सबसे ज्यादा 489 मामले मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले से सामने आए। शिवपुरी के किसान बताते हैं कि पराली को हटाने में समय और पैसा दोनों लगता है। छोटे किसान संसाधनों की कमी के कारण इसे जलाना आसान विकल्प मानते हैं।

पराली जलाने का विकल्प

  1. चारे में उपयोग: पराली से पशुओं के लिए पोषक चारा तैयार किया जा सकता है।
  2. खाद बनाएं: पराली को सड़ाकर जैविक खाद बनाया जाता है, जो मिट्टी को पोषण देती है।
  3. पेपर इंडस्ट्री: पराली का उपयोग कागज और रस्सी जैसे उत्पाद बनाने में किया जा सकता है।
  4. ईंधन: पराली से बायोगैस और जैविक ईंधन तैयार किया जा सकता है।

एमपी हाई कोर्ट का सख्त रुख

पराली जलाने के बढ़ते मामलों को देखते हुए एमपी हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने सख्त फैसला लिया है। उन्होंने कहा है कि कोई वकील पराली जलाने के आरोप में फंसे किसानों का केस नहीं लड़ेगा। शिवपुरी के किसानों का उदाहरण दिखाता है कि पराली को जलाने के बजाय अगर सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए, तो यह पर्यावरण और खेती दोनों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।

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