आजकल मोहन सरकार बड़ी मुश्किल में फँसी है। पिछली शिवराज सरकार के टाइम के एक के बाद एक ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जिनमें अफसरों पर सीधी कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
ग्रामीण आजीविका मिशन में भर्ती का घोटाला सामने आया है। इसमें उस टाइम के CEO एलएम बेलवाल और पंचायत एवं ग्रामीण विकास के अपर मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस के रोल पर सवाल उठ रहे हैं।
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उधर, एमपी एग्रो और महिला एवं बाल विकास विभाग भी सप्लीमेंट्री न्यूट्रिशन के घोटाले में फँसे हैं, लेकिन किसी अफसर पर कोई एक्शन नहीं हुआ। यही हाल ऊर्जा विभाग का है। भारत सरकार की सौभाग्य योजना में गलत आँकड़े दिखाकर उन्होंने केंद्र सरकार से अवार्ड तक ले लिया।
जाँच पर जाँच, नतीजा सिफ़र
पिछली शिवराज सरकार के टाइम पर राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन में कॉन्ट्रैक्ट पर भर्ती के नाम पर खूब गोलमाल हुआ। उस टाइम के मंत्री गोपाल भार्गव के निर्देशों को ताक पर रखकर CEO एलएम बेलवाल ने मनमानी भर्तियाँ कीं। मामला हाईकोर्ट तक गया। तीन बार जाँच हुई और गड़बड़ियाँ भी सही पाई गईं, लेकिन अपर मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस के दम पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
उल्टा, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने एक और जाँच शुरू कर दी कि दूसरी पार्टियों को भी पेश किया जाए। कुल मिलाकर, नौ साल से चल रहा मामला आज भी वहीं का वहीं है। इतना ज़रूर हुआ कि राज्य आर्थिक अपराध इकाई (EOW) ने केस दर्ज कर लिया। इससे पहले कांग्रेस ने लोकायुक्त से शिकायत की थी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
हज़ारों टन सप्लीमेंट्री न्यूट्रिशन मोटरसाइकिल, टैंकर, कार, ऑटो से ढोया गया!
ये तो राज्य में अपनी तरह का पहला मामला था। इसे पकड़ा भी किसी और ने नहीं, बल्कि भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने पकड़ा।
जाँच में पता चला कि जिन ट्रकों के नंबर टेक होम राशन ढोने के लिए बताए गए थे, वो मोटरसाइकिल, टैंकर, कार और ऑटो के निकले। 62 करोड़ 72 लाख रुपये का 10,176 टन न्यूट्रिशन न तो गोदाम में मिला, न ही उसके ट्रांसपोर्ट का कोई सबूत था।
बिजली की खपत और कच्चे माल में भी फर्क मिला, जिसके हिसाब से 58 करोड़ रुपये का फर्जी प्रोडक्शन दिखाया गया। CAG ने मुख्य सचिव से कहा कि किसी इंडिपेंडेंट एजेंसी से जाँच कराकर दोषी अफसरों की जिम्मेदारी तय की जाए, लेकिन कुछ नहीं हुआ।
महिला एवं बाल विकास विभाग ने पहले तो रिपोर्ट को ही गलत बताकर मामले से बचने की कोशिश की, लेकिन जब विधानसभा की लोक लेखा समिति ने सवाल उठाए, तो कुछ अफसरों को औपचारिक नोटिस देकर और जवाब माँगकर मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
एमपी एग्रो के रोल पर भी सवाल उठे, क्योंकि सप्लीमेंट्री न्यूट्रिशन तैयार करने वाले प्लांट की जिम्मेदारी उसी की थी। बता दें कि राज्य में सप्लीमेंट्री न्यूट्रिशन का खेल लंबे समय से चल रहा है और एग्रो में जो अफसर तैनात थे, वो पहले मुख्यमंत्री कार्यालय में भी पोस्टेड थे। यही वजह है कि किसी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
गलत आँकड़े देकर अवार्ड भी ले लिया!
भारत सरकार ने ग्रामीण इलाकों में घरेलू बिजली कनेक्शन देने के लिए 2017 में प्रधानमंत्री हर घर सहज बिजली योजना (सौभाग्य) शुरू की थी। इसमें बिजली वितरण कंपनी ने 30 नवंबर 2018 तक घरेलू कनेक्शन देने का टारगेट पूरा करने का सर्टिफिकेट भारत सरकार को भेज दिया।
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इसी के आधार पर मध्य क्षेत्र और पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनियों को 100-100 करोड़ रुपये का इनाम भी मिला। CAG की जाँच में पता चला कि मध्य क्षेत्र कंपनी ने तो टेंडर ही दिसंबर 2018 में निकाला था। काम अक्टूबर 2019 में पूरा हुआ।
जब कांग्रेस सरकार में उस टाइम के ऊर्जा मंत्री प्रियव्रत सिंह ने इसकी जाँच कराई, तो डिंडोरी और मंडला में सौभाग्य योजना में करोड़ों रुपये का घोटाला सामने आया, लेकिन अभी तक किसी पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।