मध्य प्रदेश के उज्जैन और बदनावर को जोड़ने वाले 69.1 किमी लंबे चार लेन हाईवे का निर्माण कार्य सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया है। ₹1352 करोड़ की लागत से बने इस हाईवे ने क्षेत्र की कनेक्टिविटी को नई ऊंचाई दी है। लेकिन इस विकास के साथ एक बड़ी पर्यावरणीय चुनौती भी सामने आई कई हजार हरे-भरे पेड़ों की कटाई। इस असंतुलन को दूर करने और हरियाली को पुनर्स्थापित करने के लिए एक विशेष वृक्षारोपण अभियान चलाया जा रहा है।
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पेड़ कटाई की भरपाई तीन गुना नहीं, कई गुना अधिक पौधे लगाए
फोर लेन निर्माण के दौरान करीब 8140 पेड़ काटे गए। नियमों के अनुसार, इसकी भरपाई के लिए तीन गुना यानी करीब 24,000 पौधे लगाने की शर्त थी। लेकिन नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) और निर्माण एजेंसी जीआर इन्फ्राप्रोजेक्ट्स लिमिटेड ने इस लक्ष्य से कई गुना अधिक लगभग दो लाख पौधे लगाने का संकल्प लिया है। इनमें से अब तक 1,85,000 पौधे लगाए जा चुके हैं और शेष 15,000 पौधों का रोपण आगामी दिनों में किया जाएगा।
फोर लेन को हरा-भरा और सुंदर बनाने का लक्ष्य
फोर लेन के बीच की मीडियन और किनारों पर सजावटी, औषधीय और छायादार पौधों को रोपित किया जा रहा है। अरजुन, नीम, शीशम, गुलमोहर जैसे वृक्षों के साथ-साथ बोगनवेलिया, टिकोमा, गुड़हल और मोरपंखी जैसे फूलों वाले पौधे लगाए गए हैं। हेज़ और झाड़ी श्रेणी में आयरिसिन लाल, लॉसोनिया इनर्मी, क्लेरोडेन्ड्रोन और गोल्डन डुरांटा जैसे पौधों का चयन किया गया है।
एक पेड़ मां के नाम अभियान से जुड़ाव
इस परियोजना को ‘एक पेड़ मां के नाम’ जैसे अभियान से भी जोड़ा गया है, जिससे लोगों को पर्यावरण के प्रति भावनात्मक रूप से जोड़ा जा सके। यह अभियान लोगों को वृक्षारोपण से जोड़ने और उनमें पेड़ों के प्रति जिम्मेदारी की भावना पैदा करने में मदद कर रहा है।
13 वर्षों तक रख-रखाव की जिम्मेदारी
निर्माण एजेंसी जीआर इन्फ्राप्रोजेक्ट्स लिमिटेड पौधों की सिंचाई, पोषण और देखभाल की जिम्मेदारी अगले 13 वर्षों तक निभाएगी। परियोजना के दो वर्ष पहले ही पूरे हो चुके हैं और अब अगले 13 वर्षों तक पौधों की नियमित निगरानी और देखभाल की जाएगी। अब तक 85,000 बड़े वृक्ष और लगभग एक लाख झाड़ीदार पौधे लगाए जा चुके हैं।
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विशेष योजना के तहत किया गया वृक्षारोपण
राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण उज्जैन के प्रोजेक्ट डायरेक्टर एम.एल. पूर्विया के अनुसार, वृक्षारोपण का कार्य सड़क निर्माण के साथ ही शुरू कर दिया गया था। कुछ स्थानों पर मिट्टी की गुणवत्ता ठीक न होने से चुनौतियां आईं, लेकिन वैकल्पिक स्थानों की पहचान कर वहां रोपण किया गया। आने वाले समय में और भी व्यापक स्तर पर हरियाली की योजना बनाई गई है, जिससे यह क्षेत्र अगली सिंहस्थ तक हरा-भरा बना रहे।