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MP के छात्रों ने किया कमाल, बायोप्लास्टिक बनाकर अब होगी कचरे से कमाई जाने कैसे

अपने इंदौर के IIT वालों ने तो गजब ही कर दिया! प्लास्टिक के कचरे की जो बड़ी भारी समस्या है न, उसका एकदम देसी इलाज खोज निकाला है। उन्होंने शैवाल (algae) और बैक्टीरिया की मदद से ऐसा प्लास्टिक बनाया है जो पर्यावरण के लिए एकदम सेफ है और काम भी बिल्कुल असली प्लास्टिक जैसा करता है।

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ये सारा खोजबीन प्रोफेसर किरण बाला के देखरेख में हुआ है। उनकी टीम, जिसका नाम ‘एल्गल इकोटेक्नोलॉजी एंड सस्टेनेबिलिटी ग्रुप’ है, ने अपने यहाँ के ही छोटे-मोटे कीटाणुओं (microbes) का इस्तेमाल किया है। ये कीटाणु एकदम आसान चीजों से बायोप्लास्टिक बना सकते हैं, जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, सूरज की रोशनी और जो फैक्ट्रियों से बेकार चीजें निकलती हैं, उनसे।

IIT इंदौर के डायरेक्टर, प्रोफेसर सुहास जोशी ने बताया कि जो असली प्लास्टिक है न, वो तो अपने पर्यावरण के लिए बहुत बड़ा खतरा है। बायोप्लास्टिक का आइडिया तो पहले से था, लेकिन वो बहुत महंगा पड़ता था और उसको बड़े पैमाने पर बनाना भी मुश्किल था। लेकिन IIT इंदौर की ये नई तकनीक इन दोनों मुश्किलों को हल कर देती है।

ये बायोप्लास्टिक बनता कैसे है?

अपने वैज्ञानिकों ने कुछ खास तरह के शैवाल और बैक्टीरिया को मिलाकर एक ग्रुप बनाया है, जिसको माइक्रोबियल कंसोर्टियम कहते हैं। ये सब मिलकर एक बायोप्लास्टिक बनाते हैं, जिसको PHA कहते हैं। ये प्लास्टिक एकदम मजबूत और लचीला होता है, जैसा अपना आम प्लास्टिक होता है, लेकिन ये अपने आप ही मिट्टी में घुल जाता है, पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुँचाता। और सबसे अच्छी बात तो ये है कि इसको बनाने में जो भी चीजें लगती हैं, वो या तो कुदरती हैं या फिर बेकार चीजें हैं, जैसे सूरज की रोशनी, कार्बन डाइऑक्साइड और फैक्ट्रियों का कचरा।

इसीलिए ये तकनीक सस्ती भी है और पर्यावरण के लिए भी बहुत अच्छी है। प्रोफेसर किरण बाला ने कहा कि अब ये तकनीक लैब से निकलकर फैक्ट्री तक जाने के लिए तैयार है। मतलब, आने वाले टाइम में इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हो सकता है। इस तकनीक से प्लास्टिक की जगह पैकिंग, खेती, दवाई और रोजमर्रा की चीजों में बायोप्लास्टिक का इस्तेमाल किया जा सकेगा।

अब होगी कचरे से कमाई!

ये बायोप्लास्टिक की तकनीक एक नया रास्ता खोलेगी, जिससे बेकार चीजों से फिर से काम की चीजें बन सकेंगी। मतलब, अब कचरा भी काम आएगा!

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इसके फायदे क्या-क्या होंगे?

  1. प्लास्टिक का कचरा कम होगा।
  2. पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होगा।
  3. बेकार चीजों का सही इस्तेमाल होगा।
  4. ये सस्ती और टिकाऊ तकनीक अपने इंडिया में ही बनी है!

Ankush Baraskar

मेरा नाम अंकुश बारस्कर है मैं लगातार 2 वर्षो से डिजिटल मीडिया में कार्य कर रहा हूँ। pradeshtak.com के साथ मैं पिछले 1 वर्ष से जुड़ा हूँ. खेती और देश की मुख्य खबरों में मेरी विशेष रूचि है. देश की हर खबर सबसे पहले पाने के लिए pradeshtak.com के साथ जुड़े रहे।

MP के छात्रों ने किया कमाल, बायोप्लास्टिक बनाकर अब होगी कचरे से कमाई जाने कैसे

अपने इंदौर के IIT वालों ने तो गजब ही कर दिया! प्लास्टिक के कचरे की जो बड़ी भारी समस्या है न, उसका एकदम देसी इलाज खोज निकाला है। उन्होंने शैवाल (algae) और बैक्टीरिया की मदद से ऐसा प्लास्टिक बनाया है जो पर्यावरण के लिए एकदम सेफ है और काम भी बिल्कुल असली प्लास्टिक जैसा करता है।

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ये सारा खोजबीन प्रोफेसर किरण बाला के देखरेख में हुआ है। उनकी टीम, जिसका नाम ‘एल्गल इकोटेक्नोलॉजी एंड सस्टेनेबिलिटी ग्रुप’ है, ने अपने यहाँ के ही छोटे-मोटे कीटाणुओं (microbes) का इस्तेमाल किया है। ये कीटाणु एकदम आसान चीजों से बायोप्लास्टिक बना सकते हैं, जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, सूरज की रोशनी और जो फैक्ट्रियों से बेकार चीजें निकलती हैं, उनसे।

IIT इंदौर के डायरेक्टर, प्रोफेसर सुहास जोशी ने बताया कि जो असली प्लास्टिक है न, वो तो अपने पर्यावरण के लिए बहुत बड़ा खतरा है। बायोप्लास्टिक का आइडिया तो पहले से था, लेकिन वो बहुत महंगा पड़ता था और उसको बड़े पैमाने पर बनाना भी मुश्किल था। लेकिन IIT इंदौर की ये नई तकनीक इन दोनों मुश्किलों को हल कर देती है।

ये बायोप्लास्टिक बनता कैसे है?

अपने वैज्ञानिकों ने कुछ खास तरह के शैवाल और बैक्टीरिया को मिलाकर एक ग्रुप बनाया है, जिसको माइक्रोबियल कंसोर्टियम कहते हैं। ये सब मिलकर एक बायोप्लास्टिक बनाते हैं, जिसको PHA कहते हैं। ये प्लास्टिक एकदम मजबूत और लचीला होता है, जैसा अपना आम प्लास्टिक होता है, लेकिन ये अपने आप ही मिट्टी में घुल जाता है, पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुँचाता। और सबसे अच्छी बात तो ये है कि इसको बनाने में जो भी चीजें लगती हैं, वो या तो कुदरती हैं या फिर बेकार चीजें हैं, जैसे सूरज की रोशनी, कार्बन डाइऑक्साइड और फैक्ट्रियों का कचरा।

इसीलिए ये तकनीक सस्ती भी है और पर्यावरण के लिए भी बहुत अच्छी है। प्रोफेसर किरण बाला ने कहा कि अब ये तकनीक लैब से निकलकर फैक्ट्री तक जाने के लिए तैयार है। मतलब, आने वाले टाइम में इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हो सकता है। इस तकनीक से प्लास्टिक की जगह पैकिंग, खेती, दवाई और रोजमर्रा की चीजों में बायोप्लास्टिक का इस्तेमाल किया जा सकेगा।

अब होगी कचरे से कमाई!

ये बायोप्लास्टिक की तकनीक एक नया रास्ता खोलेगी, जिससे बेकार चीजों से फिर से काम की चीजें बन सकेंगी। मतलब, अब कचरा भी काम आएगा!

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इसके फायदे क्या-क्या होंगे?

  1. प्लास्टिक का कचरा कम होगा।
  2. पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होगा।
  3. बेकार चीजों का सही इस्तेमाल होगा।
  4. ये सस्ती और टिकाऊ तकनीक अपने इंडिया में ही बनी है!

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